मदरसे हमारी दुनिया नहीं, धर्म हैं, ये हमारी पहचान हैं और हम अपनी इस पहचान को मिटने नहीं देंगे।
- Arshad Madani
- Jun 3
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मदरसे हमारा दीन हैं, दुनिया नहीं , ये मदरसे हमारी पहचान हैं और हम अपनी इस पहचान को मिटाने नहीं देंगे
ये मदरसे ही हैं जहां से देश को गुलामी से मुक्त कराने की पहली आवाज़ उठी थीः- मौलाना अरशद मदनी
नई दिल्ली, 2 मई 2025
‘‘मदरसे हमारी दुनिया नहीं, दीन हैं, ये हमारी पहचान हैं और हम अपनी इस पहचान को मिटाने नहीं देंगे।’’ ये शब्द जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी के हैं जो उन्होंने गत 1 जून की रात आज़मगढ़ के क़स्बा सरायमीर में आयोजित ‘मदरसा सुरक्षा सम्मेलन’ को संबोधित करते हुए कहे। उन्होंने कहा कि यह कोई साधारण सम्मेलन नहीं है, बल्कि यह एक महत्वपूर्ण सम्मेलन है जो वर्तमान परिथिति में मदरसों की सुरक्षा को सुनिश्चित बनाने के लिए गंभीरता से चिंतन करने और आगे के लिए एक प्रभावी रणनीति तैयार करने के लिए आयोजित किया गया है। उन्होंने कहा कि ये मदरसे केवल पाठशालाएं नहीं हैं, उनका उद्देश्य पढ़ने-पढ़ाने तक ही सीमित नहीं बल्कि देश और मिल्लत के बच्चों के मस्तिष्क को शिक्षित करना भी रहा है। आज जिन मदरसों को असंवैधानिक घोषित कर के ज़बरदस्ती बंद करवाया जा रहा है ये वही मदरसे हैं जहां से देश को अंग्रेज़ों की गुलामी से मुक्त कराने के लिए पहली आवाज़ उठी थी। मौलाना मदनी ने कहा कि विडंबना यह है कि आज जो लोग सत्ता में हैं वो कुछ पढ़ना और जानना नहीं चाहते बल्कि इतिहास को विकृत करके एक विशेष रंग देना चाहते हैं, ऐसे लोगों को हम ये बताना चाहते हैं कि 1803 में जब देश पर अंग्रेज़ों का पूर्ण क़ब्ज़ा हो गया तो दिल्ली से उस समय के एक महान आध्यात्मिक व्यक्तित्व शाह अबदुल अज़ीज़ मुहद्दिस देहलवी ने अपने मदरसा रहीमिया से एक टूटी चटाई पर बैठ कर यह घोषणा की कि देश अब गुलाम हो गया इसलिए अब देश को गुलामी से मुक्ति दिलाने के लिए ‘जिहाद’ करना एक धार्मिक कर्तव्य है। इस घोषणा के परिणाम स्वरूप उनके मदरसे की ईंट से ईंट बजा दी गई और मुहद्दिस देहलवी पर अत्याचार के पहाड़ तोड़ दिए गए।
उन्होंने कहा कि यह एक इतिहास है और इसे झुठलाया नहीं जा सकता। 1857 की बग़ावत को ही देखें, जिसे अंग्रेज़ों ने ‘ग़दर’ का नाम दिया था, इस बग़ावत के कारण केवल दिल्ली में 32 हज़ार उलमा को क़त्ल किया गया, बलिदान का यह सिलसिला यहीं नहीं रुका, लगातार जारी रहा। हमारे बड़ों के डेढ़ सौ वर्षीय संघर्ष और बलिदान के नतीजे में यह देश स्वतंत्र हुआ, हम यह बात डंके की चोट पर कह रहे हैं, विश्वास न हो तो इतिहास की पुस्तकें खोल कर पढ़ लो, दारुल उलूम देवबंद की स्थापना ही इसी उद्देश्य से हुई थी कि वहां से देश के स्वतंत्रता संग्राम के लिए नए कार्यकर्ता पैदा किए जाएं। मौलाना मदनी ने कहा कि इतिहास से अनभिज्ञ लोग आज उन्ही मदरसों को आतंकवाद का अड्डा घोषित कर रहे हैं, यह आरोप भी लगाया जाता है कि मदरसों में कट्टरवाद की शिक्षा दी जाती है। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश से लेकर उत्तराखंड, असम और हरियाणा तक मदरसों और मस्जिदों के खिलाफ कार्रवाई धर्म के आधार पर हो रही है। सवाल यह है कि एक लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष देश में यह भेदभाव और अन्याय क्यों? जबकि देश के संविधान ने हर नागरिक को समान अधिकार और समान विकल्प दिए हैं? जवाब आसान है, एक विशेष मानसिकता के अंतर्गत बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक के बीच नफ़रत की धाई पैदा की जा रही है। यह सत्ता की प्राप्ति और बहुसंख्यक को अल्पसंख्यक के खिलाफ लामबंद करने की एक साज़िश है। उन्होंने यह भी कहा कि यह एक धर्मनिरपेक्ष देश है इसलिए धर्म के आधार पर किसी विशेष समुदाय के साथ दुव्र्यहार और अन्याय की अनुमति नहीं दी जा सकती, परंतु आज का कटु सत्य यह है कि खुले आम एक विशेष समुदाय के खिलाफ धर्म के अधार पर भेदभाव हो रहा है और उसे यह समझाने की साजिश हो रही है कि उसके नागरिक अधिकार समाप्त कर दिए गए हैं। मौलाना मदनी ने आगे कहा कि परिस्थिति चाहे कितनी ही गंभीर क्यों न हो हमें निराश होने की आवश्यकता नहीं बल्कि इस प्रकार की परिस्थितियांे का मुक़ाबला दृढ़ संकल्प एवं साहस के साथ किया जाए। जमीअत उलमा-ए-हिंद ने आज़ादी से पहले और आज़ादी के बाद देश में शांति व्यवस्था और एकता स्थापित करने के प्रयास के साथ साथ हर प्रकार के अन्याय, भेदभाव और अत्याचार के खिलाफ लगातार संघर्ष किया है और आगे भी पूरी ताकत के साथ करती रहेगी। उन्होंने यह भी कहा कि हमारी लड़ाई सरकार से है, जनता से नहीं, मदरसे हमारी महाधमनी हैं, और ऐसा कर के हमारी महाधमनी को काट देने का षड़यंत्र शुरू हुआ है, असंवैधानिक घोषित करके मदरसों के खिलाफ कार्रवाई का ताज़ा अभियान सुप्रीमकोर्ट के फैसला की अवमानना के समान है। जमीअत उलमा-ए-हिंद इस साजिश के खिलाफ एक बार फिर अपनी क़ानूनी लड़ाई शुरू कर चुकी है, इसलिए कि मदरसों की सुरक्षा दीन की सुरक्षा है, हम लोकतांत्रिक, संविधान की सर्वाेच्चता और मदरसों के सुरक्षा के लिए क़ानूनी और लोकतांत्रिक संघर्ष जारी रखेंगे, उन्होंने मदरसों के ज़िम्मेदारों का साहस बढ़ाते हुए कहा कि जमीअत उलमा-ए-हिंद आपके साथ खड़ी है और यह आपको हर प्रकार की क़ानूनी सहायता प्रदान करेगी, इसके अतिरिक्त जमीअत उलमा उत्तर प्रदेश ने एक आर्कीटेक्ट पैनल गठित किया है जो मस्जिदों और मदरसों के निर्माण के लिए नक़्शे की अनुमति और कम्पाऊंड जैसे मुद्दों के समाधान के लिए आपकी सहायता करेगा, जमीअत उलमा-ए-हिंद का क़ानूनी पैनल पहले से सक्रिय है जो हाई कोर्टों से लेकर सुप्रीमकोर्ट तक सैकड़ों मुक़दमे लड़ रहा है, मौलाना मदनी ने मदरसों के ज़िम्मेदारों को यह सलाह भी दी कि मदरसों और मस्जिदों के निर्माण से पहले यह देख लिया जाना अति आवश्यक है कि जो ज़मीन निर्माण के लिए निर्धारित की गई है उसका स्वरूप किया है उन्होंने यह भी कहा कि हमें अपने मदरसों और मस्जिदों के लिए किसी अन्य की सहायता और सहयोग की आवश्यकता नहीं है, हम इस बात को सुनिश्चित बनाएं कि नए मदरसों और मस्जिदों के निर्माण के लिए जो ज़मीन निर्धारित की जाए वो हमारी अपनी हो, उचित तो यह है कि उस ज़मीन को मदरसे और मस्जिद के नाम वक़्फ़ या दान कर दिया जाए, उन्होंने अंत में कहा कि जिस प्रकार की परिस्थति हमारे लिए जानबूझकर पैदा कर दी गई है उससे भयभीत और निराश होने की आवश्यकता नहीं बल्कि उससे निमटने के लिए हमें अपना क़ानूनी और लोकतांत्रिक संघर्ष जारी रखना चाहिए।
उल्लेखनीय है कि इस सम्मेलन का आयोजन जमीअत उलमा-उत्तर प्रदेश ने किया था और अहम बात यह है कि इस सम्मेलन में सभी मसलक के मदरसों के ज़िम्मेदार शरीक थे, इसलिए कहा जा सकता है कि मसलकी एकता के संदर्भ में भी यह एक ऐतिहासिक सम्मेलन था। स्पष्ट हो कि सम्मेलन की अध्यक्षता जमीअत उलमा उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष मौलाना अशहद रशीदी ने की और सम्मेलन का संचालन जमीअत उलमा उतर प्रदेश के उपाध्यक्ष मुफ़्ती अशफ़ाक़ आज़मी ने किया। महासचिव जमीअत उलमा-ए-हिंद मुफ़्ती सय्यद मासूम साक़िब और क़ानूनी सलाहकार जमीअत उलमा यूपी मौलाना कअ़ब भी सम्मेलन में उपस्थित थे।