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हल्द्वानी दंगे के दोषी पुलिस अधिकारियों पर कानूनी कार्रवाई जरूरी है। जमीयत उलेमा की ओर से हलद्वानी पुलिस फायरिंग के पीड़ितों को प्रति व्यक्ति 2 लाख रुपये और राहत के लिए 25 लाख रुपये की तत्काल सहायत.

Arshad Madani



  • हल्द्वानी फायरिंग के दोषी पुलिस कर्मियों के खिलाफ क़ानूनी कार्रवाई ज़रूरी

  • पहले हम देश की आज़ादी के लिए लड़े, अब लगता है हमें आज़ादी की सुरक्षा के लिए लड़ना होगाः- मौलाना अरशद मदनी

  • जमीयत उलमा-ए-हिंद की कार्य समिती में हल्द्वानी पुलिस फायरिंग में मारे गए प्रत्येक व्यक्ति को दो लाख रुपये की तत्काल सहायता और रीलीफ के लिए 25 लाख रुपये देने की घोषणा



नई दिल्ली, 17 फरवरी 2024

जमीअत उलमा-ए-हिंद की कार्य समिती की आज एक महत्वपूर्ण बैठक अध्यक्ष जमीअत उलमा-ए-हिंद मौलाना अरशद मदनी की अध्यक्षता में जमीअत उलमा-ए-हिंद के कार्यालय में आयोजित हुई। बैठक में भाग लेने वालों ने देश की वर्तमान स्थ्तिि पर विचार-विमर्श करते हुए देश में बढ़ती हुई सांप्रदायिकता, हिंसा, क़ानून व्यवस्था की गिरावट, अल्पसंख्यकों और मुसलमानों के साथ धर्म के आधार पर भेदभाव का व्यवहार, वक़्फ संपत्तियों की सुरक्षा, पूजा स्थल संरक्षण अधिनियम 1991 के बावजूद मस्जिदों और क़ब्रिस्तानों के खिलाफ सांप्रदायिकों के अभियान, हल्द्वानी में पुलिस फायरिंग, मुसलमानों के खिलाफ एकतरफा कार्रवाई और फिलिस्तीन में इजराइल की आक्रामक हिंसा के मामले पर गहरी चिंता व्यक्त की और इन जैसे बहुत सारे ज्वलंत मुद्दों पर चर्चा हुई। बैठक में ज्ञानवापी जामा मस्जिद मुकदमा और पूजा स्थल संरक्षण अधिनियम 1991 से संबंधित प्रस्ताव भी पारित किये गए और कहा गया कि बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि स्वामित्व मुक़दमे में सुप्रीमकोर्ट ने अपनी विशेष शक्तियों का प्रयोग करके मामले का फैसला किया जिसे देश के मुसलमानों ने कड़वा घूँट समझ कर पी लिया और यह समझा कि अब देश में शांति व्यवस्था स्थापित हो जाएगी, लेकिन इस फैसले के बाद देश के सांप्रदायिक शक्तियों का मनोबल बढ़ गया और उन्होंने बनारस की ज्ञान वापी जामा मस्जिद, मथुरा की शाही ईदगाह और टीले वाली मस्जिद जैसी लगभग दो हजार मुस्लिम इबादतगाहों पर अपने दावे करना शुरू कर दिये हैं। बाबरी मस्जिद मुक़दमे में सुप्रीमकोर्ट ने पूजा स्थलों की सुरक्षा के क़ानून 1991 के महत्व का उल्लेख किया है। इस क़ानून को देश के हित में उत्तम बताया लेकिन इसे प्रभावी ढंग से लागू न होने के कारण निचली अदालतें मुकदमों की सुनवाई कर रही हैं और पुरातत्व विभाग भी खुदाई की अनुमति दे रहा है जो इस क़ानून के खिलाफ है। बाबरी मस्जिद मुकदमे में सुप्रीमकोर्ट ने पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट की वैधानिकता को खारिज कर दिया था। उल्लेखनीय है कि 17 अक्तूबर 2020 से पूजा स्थलों की सुरक्षा के क़ानून की रक्षा और प्रभावी कार्यान्वयन के लिए जमीताअत उलमा-ए-हिंद की याचिका विचाराधीन है, अदालत ने केन्द्र सरकार को नोटिस जारी किया है परन्तु केन्द्र सरकार ने अब तक हलफनामा दाखिल नहीं किया है।

बैठक में हल्द्वानी पुलिस फायरिंग में मारे गए प्रत्येक व्यक्ति को दो-दो लाख रुपये की तत्काल सहायता और वहां राहत कार्य के लिए कुल 25 लाख रुपये देने की घोषणा की गई। दोषी पुलिस कर्मियों के खिलाफ क़ानूनी लड़ाई के लिए लीगल पैनल सलाह मश्वरा कर रहा है जबकि मृतकों को सरकार द्वारा मुआवज़ा दिए जाने के संबंध में भी मीटिंग में मांग की गई। कार्य समिती के लिए जारी एजंडे के अनुसार जमीअत उलमा-ए-हिंद के अगले टर्म की अध्यक्षता के लिए स्टेट जमीअतों की कार्य समितीयों की सिफारिशों की समीक्षा की गई, सभी स्टेट यूनिटों ने सर्वसम्मति से मौलाना अरशद मदनी के नाम की सिफारिश की, इसलिए कार्य समिती ने जमीअत उलमा-ए-हिंद के अगले टर्म की अध्यक्षता के लिए मौलाना अरशद मदनी के नाम की घोषणा की और कार्य समिती में 16 फरवरी से 16 मई तक पूरे देश में इस टर्म के सदस्यता अभियान की घोषणा भी की गई।



इस अवसर पर अपने अध्यक्षीय भाषण में मौलाना मदनी ने कहा कि इस समय देश की स्थिति जितनी घातक है इसका अतीत में उदाहरण नहीं मिलता। सत्ता परिवर्तन के बाद लगातार जो घटनाएं हो रही हैं उसे देखतें हुए अब इसमें कोई संदेह नहीं रह गया है कि भारत फासीवाद की चपेट में आगया है और सांप्रदायिक एवं अराजकतावादी ताकतों की आवाज़ें तेज़ हो गई हैं। उन्होंने आगे कहा कि इधर कुछ वर्षों से अल्पसंख्यकों विशेषकर मुसलमानों के साथ जो कुछ होता आरहा है यहां दोहराने की जरूरत नहीं है। नए-नए विवाद खड़े करके मुसलमानों को न केवल उकसाने का प्रयास हो रहा है बल्कि उन्हें किनारे लगा देने की योजनाबद्ध साजिशें हो रही हैं, लेकिन इस सब के बावजूद मुसलमानों ने जिस धैर्य और सहनशीलता का प्रदर्शन किया है वह अभूतपूर्व है। मौलाना मदनी ने कहा कि हमें आगे भी इसी तरह धैर्य और सहनशीलता का प्रदर्शन करना होगा, सांप्रदायिक ताकतें इस समय भी विभिन्न बहानों से उकसाने और भड़काने का प्रयास कर सकती हैं, क्योंकि लोकसभा का चुनाव होने वाला है। मौलाना मदनी ने कहा कि पहले चुनाव रचनात्मक कार्यक्रम, रोज़गार और शिक्षा जैसे मूल मुद्दों के आधार पर लड़ा जाता था लेकिन दुर्भाग्य से सांप्रदायिक ताक़तों ने लोगों को धर्म का नशा पिला दिया है, अब चुनाव केवल सांप्रदायिकता के आधार पर लड़ा जा रहा है। उन्होंने कहा कि पहले हमने देश की आज़ादी के लिए बलिदान दिया और अब हमें इस आज़ादी की सुरक्षा के लिए बदिलदान देना होगा, अगर हमने ऐसा नहीं किया तो वह दिन दूर नहीं जब बोलने को भी एक गंभीर अपराध माना जाने लगेगा। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम में बलिदान देने वाले हमारे बड़ों ने जिस भारत का सपना देखा था, वह यह भारत कदापि नहीं है, हमारे बड़ों ने ऐसे भारत की कल्पना की थी जिसमें बसने वाले सभी लोग हमेशा की तरह नस्ल, बिरादरी और धर्म से ऊपर उठकर शांति और सद्भाव के साथ रह सकें। देश की वर्तमान राजनीतिक एवं सामाजिक स्थिति से संबंधित सरकारों के व्यवहार पर चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि जो काम अदालतों का था वह अब सरकारें कर रही हैं, ऐसा लगता है कि भारत में अब क़ानून का राज समाप्त हो गया है, उनके मुंह से निकलने वाले शब्द क़ानून हैं और घरों को ध्वस्त कर के तुरंत फैसला करना क़ानून की नई रीत बन गई है। ऐसी स्थिति में पूरे देश के पीड़ितों को न्याय दिलाने और संविधान एवं लोकतंत्र को बचाने और कानून की सर्वोच्चता को बनाए रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया गया, लेकिन अफसोस वरिष्ठ क़ानून विशेषज्ञ और सुप्रीमकोर्ट एवं हायकोर्ट के रिटायर्ड जज अदालतों और विशेषकर सुप्रीमकोर्ट के फैसले के संबंध में चाहे बाबरी मस्जिद का मामला हो, ज्ञान वापी जामा मस्जिद का हो या धारा 370 का, खुले आम निराशा और आलोचना व्यक्त करें तो हम जैसे लोगों को चिंतित होना आवश्यक है, इन सब के बावजूद हमारे लिए अंतिम सहारा अदालतें ही रह जाती हैं


हल्द्वानी में पुलिस की बर्बरता और क्रूरता की निंदा करते हुए उन्हेंने उत्तराखंड सरकार से मांग की है कि हल्द्वानी में जो निर्दोष लोग पुलिस की गोली से मारे गए हैं उन्हें न केवल उचित मुआवज़ा दे बल्कि उनके परिवार में से एक व्यक्ति को सरकारी नौकरी भी दे ताकि प्रभावित परिवारों को भुखमरी और प्रताड़ना से बचाया जा सके। उन्होंने भीड़ पर अंधाधुंध गोलियां चलाने वाले पुलिस कर्मियों के खिलाफ कड़ी क़ानूनी कार्रवाई की भी मांग की, उन्होंने कहा कि हम वैध-अवैध की बहस में अभी नहीं पड़ना चाहते, हम तो बस यह जानते हैं कि अंधाधुंध गोलियां चलाई गईं जिसके कारण छः निर्दोष लोगों को अपने जीवन से हाथ धोना पड़ा और दो लोग अब भी अस्पतालों में जिंदगी और मौत से जूझ रहे हैं। मौलाना मदनी ने कहा कि लोगों पर अन्यायपूर्ण क्रूरता की गई, यहां तक कि छः ऐसे लोगों को गोली मार कर शहीद कर दिया गया जो पेशे से मज़दूर थे और अपना काम पूरा करके घर लौट रहे थे। अब उन पर ही दंगा और हिंसा का सारा दोष थोप कर न केवल उन्हें गिरफ्तार किया जा रहा है बल्कि उनसे नुकसान की भरपाई भी करने को कहा गया है, यह कहां का न्याय है? बड़ा प्रश्न यह है कि स्थानीय लोगों का जो नुक़सान हुआ और जो छः क़ीमती जानें गई हैं इसका ज़िम्मेदार कौन है? और क्या इसकी कोई जांच नहीं होनी चाहिए और क्या इसका कोई जुर्माना नहीं मांगा जाना चाहिए? उन्होंने कहा कि पूरा हल्द्वानी शहर वसीयत की ज़मीन पर आबाद है, ऐसे में अगर मस्जिद और मदरसे को अवैध घोषित कर ध्वस्त किया जा सकता है तो वहां स्थापित अन्य धर्मों के पूजा स्थल को केसे वैध कहा जा सकता है? इससे स्पष्ट है कि ऐसा धार्मिक भेदभाव के आधार पर किया गया और इसका उद्देश्य शहर के सांप्रदायिक सौहार्द को नुकसान पहुंचाना और मुसलमानों को सबक़ सिखाना है। उन्होंने यह भी कहा कि अगर राज्य सरकार पुलिस कर्मियों के खिलाफ कोई ऐक्शन नहीं लेती और पीड़ितों के लिए उचित मुआवज़े की घोषणा नहीं करती तो शीघ्र ही जमीअत उलमा-ए-हिंद इसके खिलाफ अदालत जाएगी।


फिलिस्तीन में जारी नरसंहार पर गहरा दुख और चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि शर्मनाक बात यह है कि इस खुले अत्याचार और क्रूरता को रोकने में संयुक्त राष्ट्र और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय पूरी तरह असफल रहे है, इस संबंध में मुस्लिम देश अगर फिलिस्तीन विवाद के समाधान के लिए अब भी न जागे तो बहुत देर हो होगी, फिलिस्तीन की बहादुर जनता जो वर्षों से बलिदान दे रही है वह अपनी मातृभूमि की आज़ादी और पहले किबला की पुनः प्राप्ति के लिए है। जमीअत उलमा-ए-हिंद उत्पीड़ित फिलिस्तीनियों के साहस, हिम्मत और धैर्य को प्रशंसा की दृष्टि से देखती है और दुआ करती है कि अल्लाह इन बहादुरों के साहस और हिम्मत को बढ़ाए, आतंकवादी इजराइल को पराजित करे और मुजाहिदीन की सहायता करे।


मौलाना मदनी ने अंत में कहा कि अगर फासीवादी दल और उनके समर्थक यह सोचते हैं कि इस अत्याचार एवं क्रूरता के आगे मुसलमान झुक जाएंगे तो यह उनका भ्रम है, यह हमारा देश है, हम यहीं पैदा हुए हैं, हमारे बाप-दादा ने इस देश के निर्माण एवं विकास में न केवल अहम भूमिका निभाई है बल्कि इसकी आज़ादी के लिए अपने जीवन का बलिदान तक किया है, इसलिए हमदेश में मुसलमान ही नहीं किसी भी वर्ग के साथ होने वाले अन्याय, भेदभाव का व्यवहार और अत्याचर एवं क्रूरता को बर्दाश्त नहीं सकते ।


बैठक में अध्यक्ष जमीअत उलमा के अतिरिक्त उपाध्यक्ष मौलाना अब्दुल अलीम फारूकी, महासविच मुफ्ती सैयद मासूम साक़िब, उपाध्यक्ष मौलाना सैयद असजद मदनी, मुफ्ती गयासुद्दीन रहमानी हैदराबाद, मौलाना बदर अहमद मुजीबी पटना, मौलाना अब्दुल्लाह नासिर बनारस, कारी शम्सुद्दीन कोलकाता, मुफ्ती अशफ़ाक़ अहमद आजमगढ़, हाजी सलामतुल्लाह दिल्ली, मौलाना फजलुर्रहमान क़ासमी, मुफ्ती अब्दुलकय्यूम मंसूरी गुजरात अथवा विशेष आमंत्रित के रूप में मौलाना मुहम्मद राशिद राजस्थान, मौलाना मुहम्मद मुस्लिम क़ासमी दिल्ली, मौलाना मुहम्मद अहमद भोपाल, ऐडवोकेट शाहिद नदीम मुंबई, मुफ्ती अब्दुर्राज़िक़ मज़ाहिरी दिल्ली, मौलाना अब्दुलक़य्यूम मालेगांव, मुफ्ती हबीबुल्लाह जोधपुर आदि शरीक हुए । बैठक आदरणीय अध्यक्ष की दुआ पर संपन्न हुई।



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> MAULANA SYED ARSHAD MADANI

Arshad Madani is the son of Maulana Syed Hussain Ahmad Madani, who was the former President, Jamiat Ulama-e-Hind, and Prisoner of Malta. He was also Head of Teachers and Professor of Hadees in Darul Uloom, Deoband, Uttar Pradesh, India.

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