मीडीया की पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग के खिलाफ जमीअत उलमा-ए-हिंद 7 अप्रैल 2020 से सुप्रीमकोर्ट में केस लड़ रही है मीडीया ट्रायल पर सुप्रीमकोर्ट के आदेश को हम सम्मान की दृष्टि से देखते हैंः जमीअत उलमा-ए-हिंद पक्षपाती मीडीया का गैर-ज़िम्मेदाराना व्यवहार समाज में सांप्रदायिकता का ज़हर घोल रहा है, अदालत द्वारा कड़ी कार्रवाई की ज़रूरत हैः मौलाना अरशद मदनी नई दिल्ली, 14 सितम्बर 2023 अध्यक्ष जमीअत उलमा-ए-हिंद मौलाना अरशद मदनी ने मीडीया ट्रायल से सम्बंधित सुप्रीमकोर्ट के आदेश पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि हम इसको सम्मान की दृष्टि से देखते हैं। मौलाना मदनी ने कहा कि जमीअत उलमा-ए-हिंद 7 अप्रैल 2020 से कोरोना वाइरस को मर्कज़ निजामुद्दीन से जोड़ कर तब्लीगी जमात के लोगों और विशेषकर मुसलमानों की छवि खराब करने और हिंदू-मुसलमानों के बीच नफरत फैलाने की साजिश करने वाले पक्षपाती टीवी चैनलों और सांप्रदायिक प्रिंट मीडीया के खिलाफ सुप्रीमकोर्ट में याचिका दाखिल कर रखी है, जिस पर अब तक 15 सुनवाइयां हो चुकी हैं, इनमें जमीअत उलमा-ए-हिंद की ओर से सीनीयर ऐडवोकेट दुष्यंत दवे, संजय हेगड़े और अन्य वकील पेश होते रहे हैं। लेकिन अब तक कोई अंतिम निर्णय नहीं आया है। केंन्द्र सरकार टालमटोल से काम ले रही है, लेकिन हमारा पक्षपाती मीडीया पर लगाम कसने का संघर्ष सकारात्मक परिणाम आने तक जा रहेगा। मौलाना मदनी ने एक सवाल के जवाब में कहा कि वंविधान ने देश के हर नागरिक को अभिव्यक्ति की पूर्ण स्वतंत्रता दी है, लेकिन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में जानबूझकर अपमान, अल्पसंख्यकों और विशेषकर मुसलमानों का जो चरित्र हनन और उसके द्वारा उकसाया जाता है, हम उसके सख़्त ख़िलाफ हैं लेकिन दुर्भाग्य से पिछले कुछ वर्षों में पक्षपाती मीडीया विशेषकर अधिकतर इलैक्ट्रॉनिक मीडीया द्वारा मुसलमानों के खिलाफ हो रही लगातार नकारात्मक रिपोर्टिंग से मुसलमानों की आजादी और उनकी जिंदगी को ख़तरा पैदा हो गया है, जो संविधान में दिए गए ‘‘राइट टू लाईफ’’ के मूल अधिकार के खिलाफ है। मीडीया का एक बड़ा वर्ग अपनी रिपोर्टिंग द्वारा समाज में धार्मिक नशा पिला कर सांप्रदायिकता का जो ज़हर फैला रहा है वो कोरोना वाइरस से अधिक घातक है। दुर्भागयसे यह पक्षपाती न्यूज चैनल जनता की मूल समस्या पर बात करने की जगह योजनाबद्ध तरीक़े से नफरत फैलाने में लगे रहते हैं । डिबेट और चर्चा द्वारा ऐसी रिपोर्टें दिखाई जा रही हैं जिससे समाज में सांप्रदायिकता फैले और धार्मिक कट्टरता को बढ़ावा मिले और नफरत की राजनीति करने वाले लोग अपनी राजनीति को आगे बढ़ा सकें। मौलाना मदनी ने कहा कि एक बड़ा वर्ग अल्पसंख्यकों और कमज़ोरों विशेषकर मुसलमानों के मामले में जज बन जाता है और आरोपी को अपराधी बनाकर प्रस्तुत करना एक आम सी बात हो गई है, जैसा कि अतीत में आतंकवाद और दंगे के आरोप में गिरफ्तार लोगों को लेकर इसी तरह का व्यवहार किया जाता रहा है। लेकिन अफसोस जब बाद में अदालत उन्हें निर्दोष मानकर बाइज़्ज़त बरी कर देती है तो मीडीया को सांप सूंघ जाता है। गिरफ्तारी पर ब्रेकिंग न्यूज़ चलाते हैं और बरी होने पर एक लाईन की खबर दिखाना भी उन्हें गवारा नहीं, उसके सैंकड़ों उदाहरण हमारे पास मौजूद हैं, परन्तु एक अहम अदाहरण अक्षरधाम मंदिर हमला मुकद्दमे में मुफ्ती अब्दुलकय्यूम और उनके साथियों का है जिनको ज़िला अदालत ने फांसी और आजीवन कारावास की सजाएं सुनाई थीं, लेकिन जब यह मामला सुप्रीमकोर्ट पहुंचा तो सुप्रीमकोर्ट ने मुफ्ती अब्दुलकय्यूम समेत सभी आरोपियों को न केवल बाइज़्ज़त बरी किया बल्कि दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई किए जाने का आदेश भी जारी किया, उनके बरी होने पर किसी मीडीया ने कोई न्यूज़ नहीं चलाई लेकिन जब उनकी गिरफ्तारी हुई थी तो मीडीया ने उनको पहले ही अपराधी बनाकर लोगों के सामने प्रस्तुत कर दिया था। मीडीया का यह दोहरा रवैया देश अथवा अल्पसंख्यकों के लिए अति चिंताजनक है, मौलाना मदनी ने सवाल किया कि क्या अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर संविधान की धज्जियाँ उड़ाने वाले और एकतरफा रिपोर्टिंग करने वाले देश के वफादार हो सकते हैं? वास्तव में मीडीया के इस व्यवहार से मुसलमानों का नहीं बल्कि देश का बड़ा नुक़सान हो रहा है, ऐसे में यह जरूरी है कि समाज में नफरत पैदा करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए । मुझे अदालत से पूरी उम्मीद है कि वह जमीअत उलमा-ए-हिंद की याचिका पर कोई ऐसा फैसला जरूर सुनाईगी जिससे नफरत का यह खेल हमेशा के लिए समाप्त हो सके।
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